हल्दी हर घर के रसोई की सबसे अहम् जरुरत है | इसके बिना कोई भी व्यंजन पूरा ही नहीं हो पाता है | हल्दी जितना खाने में उपयोगी है उतना ही उसके और भी अन्य कई फायदे हैं |हल्दी को धर्मिक कार्यों के अतरिक्त मसाला, रंग, सामग्री, औषधी तथा उप्त्न के रूप में उपयोग किया जाता है | भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है | आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, महाराष्ट्र, असम आदि हल्दी उत्पादित करने वाले प्रमुख्य राज्य है | इनमें से आंध्रप्रदेश प्रमुख्य राज्य हैं | यहाँ कुल क्षेत्रफल का 38 से 58 % उत्पादन होता है|
हल्दी से होने वाले चमत्कारी फायदे ?
कैंसर पर असरदार | कच्ची हल्दी बहुत ही गुणकारी मानी जाती है ,इसके उपयोग से हमे बहुत से लाभ होते हैं |यह खासतौर पर पुरुषों में होने वाले प्रोस्टेट कैंसर के कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकने के साथ साथ उन्हें खत्म भी कर देती है। यह हानिकारक रेडिएशन के संपर्क में आने से होने वाले ट्यूमर से भी बचाव करती है। |
मधुमेह पर असरदार | मधुमेह पर असरदार – कच्ची हल्दी में इंसुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण होता है। इस प्रकार यह मधुमेह रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होती है। इंसुलिन के अलावा यह ग्लूकोज को नियंत्रित करती है जिससे मधुमेह के दौरान दी जाने वाली उपचार का असर बढ़ जाता है। परंतु अगर आप जो दवाइयां ले रहे हैं बहुत बढ़े हुए स्तर (हाई डोज) की हैं तो हल्दी के उपयोग से पहले चिकित्सकीय सलाह अत्यंत आवश्यक है। |
स्किन सम्बन्धी रोगों पर असरदार | इसमें मौजूद एंटीबायोटिक गुण त्वचा म्बन्धी रोगों से लड़ने में हमारी सहयता है | |
इमुन सिस्टम को स्ट्रोंग करे | कच्चे हल्दी से बनी चाय पीने से भी बॉडी का इमुन सिस्टम मज़बूत किया जा सकता है | |
लीवर पर असरदार | हल्दी के सेवन करने से लीवर को भी मजबूती मिलती है |इसके सेवन करने से आपका लीवर मज़बूत बना रहता है | |
हल्दी की उन्नत किस्में –
- देश के विभिन्न भागों में हल्दी की खेती करने वाले क्षेत्रों में स्थानीय कल्टीवर्स होते है जो स्थानीय नामों से जाने जाते हैं उनमें से कुछ लोकप्रिय कल्टीवर्स जैसे-
- दुग्गिरल
- तेक्कुरपेट
- सुगन्धम
- अमलापुरम
- स्थानीय ईरोड
- आल्प्पी
- मुवाट्टुपूषा
- लाकडांग
- सुवर्णा
- सुरोमा,
- सुगना
- केसरी
- रश्मि
- रोमा
- पालम पिताम्बर
- पालम लालिमा
- राजेन्द्र सोनिया
- बी एस आर- 1 इत्यादि
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु –
- खेती समुद्र तल लगभग से 1500 मीटर तक ऊँचाई वाले विभिन्न ट्रोपिकल क्षेत्रों में की जाती है|
- सिंचाई आधारित खेती करते समय वहाँ का तापमान 20 – 35 डिग्री सेन्टीग्रेट और वार्षिक वर्षा 1500 मीटर मीटर या अधिक होनी चाहिए|
- इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिटटी जैसे रेतीली, मटियार, दुमट मिटटी में की जाती है, जिसकी पी.एच. मन 4.5 से 7.5 होना चाहिए|
कैसे तैयार करें अपना खेत –
- मानसून की पहली वर्षा होते ही भूमि को तैयार किया जाता है|जिसके बाद विस्तृत रूप से इसकी खेती की जाती है |
- खेत को फसल योग्य बनाने के लिए भूमि को चार बार गहराई से जोतना चाहिए|
- दुमट मिटटी में 500 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से चुने के पानी का घोल डालकर अच्छी तरह जुताई करना चाहिए |
- मानसून के पूर्व वर्षा होते ही तुरन्त लगभग एक मीटर चौड़ी,15 से.मीटर ऊँचाई तथा सुविधानुसार लम्बी बीएड को तैयार कर लेते हैं|
- इन बेड़ों के आसपास में एक दुसरे से बीच की दुरी 50 से.मीटर होनी चाहिए|
बीज का उपयोग –
- बीजों की खरीद सरकारी बीज भण्डार अथवा निजी बीज भण्डार केन्द्रों से करें| उसमें बीजों की अच्छी गुणवता निर्भर करेगी पूर्ण रूप से विकसित और रोग रहित सम्पूर्ण या प्रकन्द के टुकड़े को बुवाई के लिए उपयोग करते हैं|
- बड़ों में 25 से.मीटर × 30 से.मीटर के अंतराल पर हाथ से खोदकर छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं|
- इन गड्ढों में अच्छी तरह अपघटित गोबर की खाद या कम्पोस्ट भरकर उसमें बीज प्रकन्द को रखकर ऊपर से मिटटी डाल देते हैं ,जबकि बड़ों में बुवाई पंक्तियों में करना चाहिए|
- इन पंक्तियों में एक दुसरे से बीच की दुरी 45 – 60 से.मीटर तथा पौधों के बीच की दुरी 25 से.मीटर रखना चाहिए|
- हल्दी की बुवाई करने के लिए 2,500 किलोग्राम / हेक्टेयर प्रकन्द बीज की आवश्यकता होती है|
बुवाई की विधि –
हल्दी की खेती की बुवाई का सही समय अप्रैल मध्य से मई मध्य में उचित माना गया है | भारत के दक्षिण और पश्चिम तट वाले क्षेत्रों में जहाँ वर्षा मानसून से पहले होती है उन क्षेत्रों में अप्रैल और मई में मानसून के पूर्व वर्षा होते ही इस फसल की बुवाई की जाती है | कुछ क्षेत्रों में इस की बुवाई क्यारियों तथा मेढ़ बना कर भी करते हैं |
सिंचाई किस प्रकार से करें –
हल्दी की खेती विशेषकर मानसून के समय में की जानी चाहिए क्यों की , मानसून की जलवायु इसके उत्तम मानी जाती है अगर आप इस दौरान इसकी खेती करते हैं तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है आप मानसून आने से ठीक पूर्व ,अथवा प्रथम बारिश होने के पश्चात इसकी बुवाई कर दें | मिटटी के अनुसार आप इसकी सिंचाई कर सकते हैं , फसल काल में लगभग 15 – 23 बार चिकनी मिटटी तथा 40 बार बालुई दुमट मिटटी में सिंचाई करना चाहिए |
रोगों से इसका बचाव किस प्रकार से करें –
पर्ण दाग -(लीफ बलोच) | पर्ण दाग रोग टापहीना मेकुलान्स के द्वारा होता है | इस रोग के होने पर छोटे , अंडाकार आयताकार या अनियमित भूरे रंग के दाग पत्तियों पर पद जाते हैं जो हल्दी ही गहरे पीले या भूरे रंग के हो जाते हैं जिससे पौधे की पत्तियां पिली पद जाती हैं | इस रोग की आत्यधिक से पौधों में सूखापन आ जाता है जिसके फलस्वरूप फसल की उपज में कमी आती है | इस रोग का नियंत्रण करने के लिए 0.2% मैंकोजेब का छिड़काव करते हैं |
पर्ण चित्ती (लीफ स्पोट) | यह रोग कोलीटोट्राइकम केप्सीसी के द्वारा होता है | नई पत्तियों के उपरी भाग में विभिन्न आकार की भूरे रंग की चित्ती पडती है | यह चित्ती बाद में एक दुसरे से मिलकर पूरी पत्ती पर फैल जाती हैं | रोग ग्रसित पौधे प्राय: सुख जाते हैं | इस कारण प्रकन्द अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाता | इस रोग का नियंत्रण करने के लिए 0.3% जिनेब या 1% बोरडीआक्स मिश्रण का छिड़काव करते हैं | प्रकन्द गलन यह रोग पाइथीयम ग्रेमिनिकोलम या पी. अफानिडेरमाटम के द्वारा होता है | रोग ग्रसित पौधे के आभासी तने का निचला भाग मुलायम या नर्म पड़ जाता है एवं पानी सोख लेता है | जिसके कारण प्रकन्द साद जाता है और पौधा मर जाता है | |
प्रकन्द गलन | यह रोग पाइथीयम ग्रेमिनिकोलम या पी. अफानिडेरमाटम के द्वारा होता है | रोग ग्रसित पौधे के आभासी तने का निचला भाग मुलायम या नर्म पड़ जाता है एवं पानी सोख लेता है | जिसके कारण प्रकन्द साद जाता है और पौधा मर जाता है | इस रोग का नियंत्रण करने के लिए भंडारण करने से पहले तथा बुआई के समय प्रकन्द को 0.3% मैनकोजेब का छिड़काव करना चाहिए | |
हल्दी की खुदाई –
- हल्दी की प्रजातियों के अनुसार उसकी बुवाई के 7 से 8 महीने बाद जनवरी और मार्च के बीच में फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है|
- अल्प अवधि प्रजातियाँ 7 महीने में मध्य अवधि प्रजातियों 8 – 9 महीने में और दीर्घकालीन प्रजातियों 10 महीने के तक परिपक्व होती है|
- खेत को जोतकर प्रकंदों को हाथ से इकट्ठा कर बड़ी सावधानी पूर्वक मिटटी से अलग करते हैं|
उपज
इसकी पैदावार का आंकलन एक बीघे में लगभग 18 कुंतल तक किया जाता है | जिसको उबालकर सुखाने के पश्चात उसका एक चोथाई ही बच जाता है जिसको एकत्र करके आप मार्किट में सीधे तौर पे भी बेच सकते हैं |
माल कहाँ बेचें –
आप चाहे तो हल्दी को सीधा अपने बाजार में लोकल कस्टमर के बीच उतार सकते है। आप इसे रिटेल भी कर सकते हैं एवं बेहतर डील मिलने पर व्होलसेल की दर पे भी बेच सकते हैं। इसके कई व्यापारी आपको एडवांस तक देते हैं। ये एक नकद बिकने वाली फसल है तथा देश से लेकर विदेश तक इसकी मांग लगातार भी बढ़ रही है। ऑनलाइन के इस युग में आप चाहे तो अपने हल्दी की पैकेजिंग कर फ्लिपकार्ट, अमेज़न इत्यादि साइट पर भी बेच सकते है।
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सफलता का मंत्र:
??कभी खुद को निराश न करें?
??कड़ी मेहनत करते रहो✍️
??अपने आप पर विश्वास करो? ?
चिंता न करें, यदि आप भी खेती सम्बंधित किसी तरह के परेशानियों से जूझ रहे हैं तो हमसे संपर्क करना न भूले| याद रहे केवल उचित मार्गदर्शन से ही असंभव को संभव किया जा सकता हैं|आप अपनी उलझने हमें कमेंट भी कर सकते हैं|
शुभकामनाएँ…!!! ???
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